माँ-बाप
कोर्ट खचाखच भरा था, सभी के मन में उत्सुकता थी, आज फैसला होना है, जज साहब पर सब की नजरें अटकी हुई थी। उर्मिला आत्मविश्वास से लबरेज़ अपने पति के साथ बैठी थी, दूसरी तरफ उसके माँ-पिता व्याकुल, थके से दिखाई दे रहे थे। उर्मिला के पक्ष में फैसला आया, जज साहब ने साफ शब्दों में कहा कि उर्मिला के माँ-पिता का कोई हक नहीं बनता है, उर्मिला चाहे तो इंसानियत के नाते अपने साथ रख सकती है, उनका खर्च उठा सकती है।
कोर्ट से सीधे उर्मिला क्लिनिक आ गई, जीत की खुशी नहीं, हारने का एहसास हो रहा था। मन विद्रोह कर रहा था, विचार उथल-पुथल हो रहे थे, किसी काम में मन नहीं लग रहा था, जल्दी काम निपटा कर घर आ गई। सास से सामना हुआ, थोड़ी चिंतित लग रही थी, उनका दिल रखने के लिए थोड़ा खाना खाई, अपने कमरे में आ गई।
आँखें बंद कर लेट गई, पर बंद आँखों से भी सब कुछ स्पष्ट दिखाई दे रहा था, चार बहनों में सबसे छोटी थी उर्मिला, उसके जन्म पर घर में मातम पसर गया था, माँ को, उसके मायके को दादी कोस रही थी, गालियाँ दे रही थी। पिता जी रो रहे थे, लोग अफसोस कर रहे थे और माँ गोद में नन्ही जान को लेकर कभी अपनी किस्मत, कभी बच्ची के किस्मत को रो रही थी।
उसके बाद दोनों भाई लव-कुश का जन्म हुआ, घर का वातावरण ही बदल गया, दादा दादी दिन भर पोता पोता करते, सामने खड़ी पोतियाँ दिखाई नहीं देती। खाना-पीना, पहनना-ओढ़ना, पढ़ाई-लिखाई, लाड़-प्यार सब कुछ में दोरंगा व्यवहार होता, बेटियाँ ज़ीने के लिए रुखी-सूखी रोटी से पेट भर लो, लड़को को पसंद का ताज़ा खाना खिलाया जाता था।
उनकी जूठी थाली उर्मिला को मिल जाती थी, सभी कहते कि इसके कदम शुभ है, अपने बाद भाई ले कर आई है। दोनों की हर ज़िद पुरी की जाती थी, मुश्किल होने पर कर्ज लेकर भी इच्छाओं को पुरा किया जाता था। बिना किसी कारण के बहनों पर हाथ उठा देते, कोई कुछ नहीं कहता, लड़कियाँ खुद रो कर चुप हो जातीं, चारों उपेक्षित जीवन जीने को मजबूर थीं।
लड़कियों को ज्यादा पढ़ाने से क्या फायदा, स्कूल पास होते ही उनकी जैसे तैसे शादी करवा दी गई। उर्मिला के स्कूल के रिजल्ट आने से पहले ही उसकी शादी हो गई, श्रीनिवास एक शांत-सरल, समझदार व्यक्ति थे, सरकारी नौकरी के लिए तैयारी कर रहे थे, अपने खर्च के लिए शाम को बच्चों को पढ़ाते थे। पिता रेलवे में कर्मचारी थे, सपरिवार रेलवे क्वार्टर में रहते थे।
पहली रात को श्रीनिवास ने कहा कि मैं आपके लिये कोई तोहफा नहीं लाया, बस ये वादा करता हूँ कि पूरी कोशिश करूँगा आपको खुश रख सकूँ। आपने क्या सोचा था, आपको क्या चाहिए?
धीरे से सकुचाई स्वर में बोली कि आप आगे पढ़ने की इजाजत दे दें, जीवन भर कुछ नहीं माँगेंगे।
श्रीनिवास को बहुत आश्चर्य हुआ, उसकी नई-नवेली दुल्हन भौतिक चीजें नहीं, ज्ञान चाहती है। उसने हाथ आगे बढ़ाया, वादा करता हूँ तुम जितना पढ़ना चाहो, पढ़ो। उर्मिला ने अपने हाथ अपने पति के हाथ पर रख दिया। काँपते हाथों को मजबूत सहारा मिल गया।
कुछ दिनों बाद मेहमानों के जाने के बाद, श्रीनिवास ने उर्मिला की पढ़ने की बात माँ-पिता जी से किया। दोनों खुश हुए, जैसे उनकी बेटी पढ़ रही है वैसे ही बहु भी पढ़ेगी। उर्मिला के जीवन में ससुराल आकर पहला बदलाव आया, उसे सभी रूमा बुलाने लगे क्योंकि उसकी सासुमाँ का नाम भी उर्मिला था। दूसरा बदलाव आया कि उसे सभी सदस्यों के बराबर का दर्जा दिया गया। सब के साथ भोजन करते हुए उसका दिल भर आता, अपनी माँ और सासुमाँ के व्यवहार में जमीन आसमान का फर्क पाती, मन ही मन में माँ से घृणा और सासुमाँ से प्यार का एहसास हुआ।
कुछ दिनों में ही रिजल्ट आया, उर्मिला अपने स्कूल में पहले नंबर पर थी, सभी खुश हुए। आगे कॉलेज में दाखिला लेने की बात हुई, उर्मिला ने अपने मन की बात बताई, वो डॉक्टर बनना चाहती है। श्रीनिवास मुस्कुरा कर हामी भर दी, कुछ दिनों में ही जान गया था कि धुन की पक्की है, जरूर सफलता पायेगी।
दोनों पति पत्नी अपनी मंजिल पाने के लिए दिन-रात मेहनत करने लगे, उनका कमरा नये जोड़े का शयनकक्ष नहीं छोटा सा पुस्तकालय लगने लगा।
मेहनत रंग लाई, श्रीनिवास को सफलता मिली, ट्यूशन पढ़ा कर ख़र्च निकालने वाला अफसर बन गया। उर्मिला को पहली कोशिश में नहीं, दूसरी कोशिश में सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल गया। उर्मिला कॉलेज होस्टल में रहती, श्रीनिवास दूसरे शहर में, छुट्टियों में सब मिलते, सासुमाँ कभी-कभी किसी तीज-त्यौहार पर मिलने आती, श्रीनिवास भी जब भी मौका मिलता, आते थे।
दिन पंख लगाकर उड़ता रहा, एक दिन आया जब परीक्षा खत्म करके उर्मिला घर आ गई। एक अस्पताल में काम करने लगी, अब वो लोग अपने घर में रहने लगे। उर्मिला को लगा सारे सपने पूरे हो गये, खुशी खुशी दिन बीतने लगे। उनकी खुशियाँ दुगनी करने बिटिया रानी का आगमन हुआ, सासुमाँ को मानों एक खिलौना मिल गया।
मायका से आना जाना बहुत कम ही रहा, तीज-त्यौहार पर भी ख़र्च के डर से मिलने नहीं आते, न ही बुलाते थे। कभी कभार खबर मिलती थी, भाई को अच्छा से अच्छा खिलाने-पढ़ाने में बाबू जी कर्ज में डूबे हुए हैं। कुछ दिनों बाद खबर मिली कि दोनों अच्छा कमाने लगे हैं और अमीर बाप की बेटियों से अपनी पसंद से शादी कर के विदेश चले गए।
यहाँ रह गये बुजुर्ग माँ-पिता जी और कर्ज की भारी गठरी। दुकान, घर, खेत सब बिक गया, शरीर में ताकत नहीं रही कि काम कर सकें। फिर एक दिन जाने किसके सलाह से उर्मिला के घर कोर्ट का नोटिस आया कि उसके पिता ख़र्च मांग रहे हैं।
बाद में पता चला कि बेटों ने सलाह देकर अपना पीछा छुड़ा लिया।
एक पिता बनकर बेटी से आसरा मांगते तब उर्मिला कभी इंकार नहीं करती, पर धौस जमाकर कोर्ट-कचहरी की धमकी देकर, उर्मिला के घाव हरे हो गए, उसने मना कर दिया। आज फैसला उसके पक्ष में आ गया, पर ख़ून उबाल मार रहा है, मन माँ-बापके दुःख से दुखी है। भाई ने अपना फर्ज नहीं निभाया, वो भी तो स्वार्थी होकर पीठ दिखा रही है।
उर्मिला की तंद्रा भंग हुई, पीछे से श्रीनिवास ने कंधे पर हाथ रखा। उसके आँखों में प्यार, चेहरे पर स्थिरता, होठों पे मुस्कान जैसे उर्मिला से कह रही है कि मैं सब समझ गया, उससे गले लग कर रोने लगी, सुबकते हुए उसने कहा कि माँ-बाबूजी को घर ले आएँ?
" नीचे चारों बातें कर रहे हैं, जाओ मिल लो।" मुस्कुरा कर श्रीनिवास ने कहा।
आवाक देखती रही दुलहीनियाँ, अपना वादा भूला नहीं है उसका दूल्हा, सदा खुश रखने का वादा!????????
✍ डॉ. विभा कुमारी सिंह पटना बिहार ????
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