मछलीशहर जौनपुर के प्राचीन शहरों में से एक है, जिसके तार बौद्ध धर्म से जुड़े हैं। यह शहर जौनपुर का ऐतिहासिक और व्यापारिक स्थान है तथा इस को तहसील का दर्जा प्राप्त है। मछलीशहर जौनपुर से 30 कि.मी. दूर पश्चिम में स्थित है और राष्ट्रीय राजमार्ग 231 इसी शहर से होकर गुजरता है। वर्तमान में यहां मछलीशहर—जंघई—भदोही चार—लेन हाईवे (Four-Lane Highway) निर्माणाधीन है, जिससे इस क्षेत्र के विकास को गति मिलेगी। 2011 की जनगणना के अनुसार, मछलीशहर की जनसंख्या 26,107 (51% पुरूष तथा 49% महिलाएं) थी और यहां की साक्षरता दर 77.43% थी। यह शहर हिन्दू और मुसलमान में आपसी तालमेल के लिए प्रसिद्ध है तथा यहां होली, दिपावली तथा ईद जैसे त्यौहार बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते हैं।
मछलीशहर के इतिहास की बात करें तो कुछ लोगों का कहना है कि पहले के लोग इसे मझले शहर के नाम से जानते थे, और बाद में इसका नाम मछलीशहर हो गया था। हालांकि इसके कोई ठोस साक्ष्य प्राप्त नहीं होते। यह एक प्राचीन नगर है जिसे बौद्ध काल में ‘मच्छिका खंड’ के नाम से जाना जाता था। यह उस दौरान भगवान गौतम बुद्ध सहित बुद्धवादी भिक्षुओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले सक्रिय स्थानों में से एक था और यह स्थान गौतम बुद्ध को बहुत प्रिय था। यहां की पुरानी धरोहरों में कई ऐतिहासिक मस्जिद, इमामबाड़ा और पुराने मकबरे, पुराजुझारू राय के खेमनाथ स्थान का पाषाण स्तम्भ, कंजारी पीर का मन्दिर आदि पुरातात्विक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आज भी यहां सुल्तान हुसैन शाह शर्की द्वारा बनवाया गया जामा मस्जिद मौजूद है।
ऐसा माना जाता है कि मछलीशहर को पहले ‘घिसुवा’ के नाम से भी जाना जाता था और यह नाम भर राज्य के एक मशहूर व्यक्ति घीसू के नाम पर पड़ा था। घीसू को तालाब बनवाने का शौक था, इसलिए यहां बहुत सारे तालाब हैं। एक अन्य किंवदन्ती के अनुसार यहां के एक सूफी फकीर ने शर्की बादशाह को एक मछली भेंट की थी जो उस शर्की बादशाह के लिए बहुत शुभ साबित हुई तथा जब उस शर्की बादशाह का राज्य स्थापित हुआ तो इस शहर का नाम मछलीशहर रखा गया और साथ ही साथ यह शहर उस दौरान मछलियों का प्रजनन केन्द्र भी बन गया।
18वीं शताब्दी में इस शहर पर फतेह मोहम्मद उर्फ शेख मंगली मियाँ ने अपना अधिपत्य कायम करके ईदगाह तथा कटाहत नमक स्थान में एक किले का निर्माण कराया था। आज यह किला खंडहर हो चुका है। यहां मौलवी अब्दुल शकूर ने 1857 में कई छोटी-छोटी मस्जिदों का निर्माण करवाया था तथा कई मस्जिदें ज़मींदार मुहम्मद नूह द्वारा भी बनवाई गई थी। आज भी यहां पर कई सूफी संतों की निशानियां, क़ब्रों और मज़ारों के रूप में मिला करती हैं। यहां का पुराना किला जिसमें फौजदार रहते थे, बाद में तहसील कार्यालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया था।
मंगली मियां की मज़ार मछलीशहर क़स्बे के पश्चिम में आबादी से दूर पुराफगूई ग्राम में अIज भी है जहां अब बहुत कम लोग ही जाया करते हैं | यहाँ एक तालाब है और कर्बला भी बनी हुयी है |
इस शहर की एक विचित्र बात यह है कि ऐतिहासिक और व्यापारिक स्थान होने के बावजूद भी यहां पर कोई रेलवे स्टेशन (Railway Station) नहीं है। यहां के लोगों को ट्रेन पकड़ने के लिये यहां से 20-25 किलोमीटर दूर जंघई स्टेशन जाना पड़ता है।