मोम का शेर
सर्दियों के दिन थे, अकबर का दरबार लगा हुआ था। तभी फारस के राजा का भेजा एक दूत दरबार में उपस्थित हुआ।
राजा को नीचा दिखाने के लिए फारस के राजा ने मोम से बना शेर का एक पुतला बनवाया था और उसे पिंजरे में बंद कर के दूत के हाथों अकबर को भिजवाया, और उन्हे चुनौती दी की इस शेर को पिंजरा खोले बिना बाहर निकाल कर दिखाएं।
बीरबल की अनुपस्थिति के कारण अकबर सोच पड़ गए की अब इस समस्या को कैसे सुलझाया जाए। अकबर ने सोचा कि अगर दी हुई चुनौती पार नहीं की गयी तो जग हसायी होगी। इतने में ही परम चतुर, ज्ञान गुणवान बीरबल आ गए। और उन्होने मामला हाथ में ले लिया।
बीरबल ने एक गरम सरिया मंगवाया और पिंजरे में कैद मोम के शेर को पिंजरे में ही पिघला डाला। देखते-देखते मोम पिघल कर बाहर निकल गया ।
अकबर अपने सलाहकार बीरबल की इस चतुराई से काफी प्रसन्न हुए और फारस के राजा ने फिर कभी अकबर को चुनौती नहीं दी।
Moral: बुद्धि के बल पर बड़ी से बड़ी समस्या का हल निकाला जा सकता है.
बीरबल की खिचड़ी
पर फिर भी एक गरीब ब्राह्मण अपनी बेटी के विवाह के लिए धन जोड़ने की खातिर तैयार हो गया। जैसे-तैसे कर के उसने कांपते, ठिठुरते रात निकाल ली। और सुबह बादशाह अकबर से अपना अर्जित इनाम मांगा। अकबर ने पूछा कि तुम इतनी सर्द रात में पानी के अंदर कैसे खड़े रह पाये।
ब्राह्मण ने कहा कि मैं दूर आप के किले के झरोखों पर जल रहे दिये का चिंतन कर कर के खड़ा रहा, और यह सोचता रहा कि वह दिया मेरे पास ही है। इस तरह रात बीत गयी। अकबर ने यह सुन कर तुरंत इनाम देने से माना कर दिया, और यह तर्क दिया की, उसी दिये की गर्मी से तुम पानी में रात भर खड़े रह सके। इसलिए तुम इनाम के हक़दार नहीं। ब्राह्मण रोता हुआ उदास हो कर चला गया।
बीरबल जानता था की ब्राह्मण के साथ यह अन्याय हुआ है। उसने ब्राह्मण का हक़ दिलवाने का निश्चय कर लिया।
अगले दिन अकबर और बीरबल वन में शिकार खेलने चले गए। दोपहर में बीरबल ने तिपाई लगायी और आग जला कर खिचड़ी पकाने लगा। अकबर सामने बैठे थे। बीरबल ने जानबूझ कर खिचड़ी का पात्र आग से काफी ऊंचा लटकाया। अकबर देख कर बोल पड़े कि अरे मूर्ख इतनी ऊपर बंधी हांडी को तपन कैसे मिलेगी हांडी को नीचे बांध वरना खिचड़ी नहीं पकेगी।
बीरबल ने कहा पकेगी… पकेगी… खिचड़ी पकेगी। आप धैर्य रखें। इस तरह दो पहर से शाम हो गयी, और अकबर लाल पीले हो गए और गुस्से में बोले,
बीरबल तू मेरा मज़ाक उड़ा रहा है? तुझे समझ नहीं आता? इतनी दूर तक आंच नहीं पहुंचेगी, हांडी नीचे लगा।
तब बीरबल ने कहा कि अगर इतनी सी दूरी से अग्नि खिचड़ी नहीं पका सकती तो उस ब्राह्मण को आप के किले के झरोखे पर जल रहे दिये से ऊर्जा केसे प्राप्त हुई होगी ?
यह सुनकर अकबर फौरन अपनी गलती समझ जाते हैं और अगले दिन ही गरीब ब्राह्मण को बुला कर उसे 1000 मोहरे दे देते हैं। और भरे दरबार में गलती बताने के बीरबल के इस तरीके की प्रसंशा करते हैं।
Moral: कभी किसी के साथ अन्याय नहीं करना चाहिए.
एक पेड़ दो मालिक
अकबर बादशाह दरबार लगा कर बैठे थे। तभी राघव और केशव नाम के दो व्यक्ति अपने घर के पास स्थित आम के पेड़ का मामला ले कर आए। दोनों व्यक्तियों का कहना था कि वे ही आम के पेड़ के असल मालिक हैं और दुसरा व्यक्ति झूठ बोल रहा है। चूँकि आम का पेड़ फलों से लदा होता है, इसलिए दोनों में से कोई उसपर से अपना दावा नहीं हटाना चाहता।
मामले की सच्चाई जानने के लिए अकबर राघव और केशव के आसपास रहने वाले लोगो के बयान सुनते हैं। पर कोई फायदा नहीं हो पाता है। सभी लोग कहते हैं कि दोनों ही पेड़ को पानी देते थे। और दोनों ही पेड़ के आसपास कई बार देखे जाते थे। पेड़ की निगरानी करने वाले चौकीदार के बयान से भी साफ नहीं हुआ की पेड़ का असली मालिक राघव है कि केशव है, क्योंकि राघव और केशव दोनों ही पेड़ की रखवाली करने के लिए चौकीदार को पैसे देते थे।
अंत में अकबर थक हार कर अपने चतुर सलाहकार मंत्री बीरबल की सहायता लेते हैं। बीरबल तुरंत ही मामले की जड़ पकड़ लेते है। पर उन्हे सबूत के साथ मामला साबित करना होता है कि कौन सा पक्ष सही है और कौन सा झूठा। इस लिए वह एक नाटक रचते हैं।
बीरबल आम के पेड़ की चौकीदारी करने वाले चौकीदार को एक रात अपने पास रोक लेते हैं। उसके बाद बीरबल उसी रात को अपने दो भरोसेमंद व्यक्तियों को अलग अलग राघव और केशव के घर “झूठे समाचार” के साथ भेज देते हैं। और समाचार देने के बाद छुप कर घर में होने वाली बातचीत सुनने का निर्देश देते हैं।
केशव के घर पहुंचा व्यक्ति बताता है कि आम के पेड़ के पास कुछ अज्ञात व्यक्ति पके हुए आम चुराने की फिराक में है। आप जा कर देख लीजिये। यह खबर देते वक्त केशव घर पर नहीं होता है, पर केशव के घर आते ही उसकी पत्नी यह खबर केशव को सुनाती है।
केशव बोलता है, “हां… हां… सुन लिया अब खाना लगा। वैसे भी बादशाह के दरबार में अभी फेसला होना बाकी है… पता नही हमे मिलेगा कि नहीं। और खाली पेट चोरों से लड़ने की ताकत कहाँ से आएगी; वैसे भी चोरों के पास तो आजकल हथियार भी होते हैं।”
आदेश अनुसार “झूठा समाचार” पहुंचाने वाला व्यक्ति केशव की यह बात सुनकर बीरबल को बता देता है।
राघव के घर पहुंचा व्यक्ति बताता है, “आप के आम के पेड़ के पास कुछ अज्ञात व्यक्ति पके हुए आम चुराने की फिराक में है। आप जा कर देख लीजियेगा।”
यह खबर देते वक्त राघव भी अपने घर पर नहीं होता है, पर राघव के घर आते ही उसकी पत्नी यह खबर राघव को सुनाती है।
राघव आव देखता है न ताव, फ़ौरन लाठी उठता है और पेड़ की ओर भागता है। उसकी पत्नी आवाज लगाती है, अरे खाना तो खा लो फिर जाना… राघव जवाब देता है कि… खाना भागा नहीं जाएगा पर हमारे आम के पेड़ से आम चोरी हो गए तो वह वापस नहीं आएंगे… इतना बोल कर राघव दौड़ता हुआ पेड़ के पास चला जाता है।
आदेश अनुसार “झूठा समाचार” पहुंचाने वाला व्यक्ति बीरबल को सारी बात बता देते हैं।
दूसरे दिन अकबर के दरबार में राघव और केशव को बुलाया जाता है। और बीरबल रात को किए हुए परीक्षण का वृतांत बादशाह अकबर को सुना देते हैं जिसमे भेजे गए दोनों व्यक्ति गवाही देते हैं। अकबर राघव को आम के पेड़ का मालिक घोषित करते हैं। और केशव को पेड़ पर झूठा दावा करने के लिए कडा दंड देते हैं। तथा मामले को बुद्धि पूर्वक, चतुराई से सुल्झाने के लिए बीरबल की प्रशंशा करते हैं।
सच ही तो है, जो वक्ती परिश्रम कर के अपनी किसी वस्तु या संपत्ति का जतन करता है उसे उसकी परवाह अधिक होती है।
Moral: ठगी करने वाले व्यक्ति को अंत में दण्डित होना पड़ता है, इसलिए कभी किसी को धोखा ना दें.
सबसे शातिर खुनी
अकबर दरबार में आकर अभी बैठे ही थे कि तभी दरबार में एक हत्या का मामला आ गया। बादशाह ने हुक्म दिया, “यह हत्या का मामला है। इसमें जल्दबाजी करना ठीक नहीं होगा। इस मामले की सुनवाई अगले दिन होगी।”
अपराधी को मौका मिल गया। वह दूसरे दिन हि दरबार लगने से पहले ही बीरबल के घर पर पहुंच गया और बीरबल के आगे गिड़गिड़ाने लगा, “हजूर, आप बुद्धिमानों के बुद्धिमान हैं। मैं बड़ी आशा लेकर आपकी शरण में आया हूं। मेरी फांसी की सजा उम्र केद में तब्दील हो जाएगी तो मैं आपका उपकार जीवन भर नहीं भूलूंगा। हुजूर, मेरी आपसे प्रार्थना है कि मेरी तरफ से आप ही बहस करें।” बीरबल ने जवाब में कुछ नहीं कहा।
मामला दरबार में पेश हुआ। बादशाह अकबर ने अपराधी को उम्र कैद की सजा सुनाई। अपराधी हैरान भी हुआ और खुश भी हुआ। वह धीरे-धीरे चलकर बीरबल के नजदीक आया और बोला, “हुजूर, लाख-लाख शुक्रिया, आपने मेरी फांसी की सजा उम्र कैद में करवा दी, मैं आपका आभारी हूं।
यह सुनकर बीरबल बोला, “हां, मुझे इस मामले में मुझे बड़ी दिक्कत उठानी पड़ी। बादशाह तो तुम्हें निर्दोष समझकर छोड़ने जा रहे थे। मेरे बार-बार समझाने पर उन्होंने तुम्हें उम्र कैद की सजा दी। क्योंकि केवल मुझे पता है कि तुमने अपराध किया है और तुमने मेरे घर पर अपना अपराध कबूल भी किया था।”
अपराधी यह सुनकर हताश रह गया। वह माथा पीटकर रह गया कि बीरबल के सामने उसने अपना अपराध आखिर कबूल क्यों किया।
व्यापारी की चोरी
एक बार शहर में एक कसाई रहता था। बेहतरीन मांस बेचने के कारण वह शहर में प्रसिद्ध था। शहर में हर किसी को उसकी दुकान के बारे में पता था। त्यौहार के समय में उसकी दुकान में लोगो की भीड़ लगी रहती थी और वह कसाई पूरे दिन उनकी सेवा में व्यस्त रहता था।
ऐसे ही एक दिन एक व्यापारी व्यापारी कसाई की दुकान में आया। उस समय कसाई अपने पैसे गिनने में व्यस्त था। व्यापारी ने उसे एक किलो मांस पैक करने को कहा। कसाई ने अपने पैसे का थैला काउंटर पर रखा और मांस लेने के लिए भंडार घर में चला गया
परन्तु जब वह वापस आया तो यह देखकर हैरान रह गया कि पैसो का थैला अब वहां नहीं था। कसाई ने बहुत गुस्से में कहा, “श्रीमन माफ करना, मुझे लगता हैं आपने मेरा थैला चुराया हैं। मैं उसे मांस लाने से पहले इधर छोड़कर गया था।” व्यापारी बोला, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे चोर कहने की। यह मेरे पैसो का थैला हैँ और मैं यह अपने दुकान से साथ लाया था।”
कसाई और व्यापारी की लड़ाई अब बढ़ गयी और बहुत से लोग उनके चारों ओर ईकठा हो गये। आखिकर किसी ने उन्हें बीरबल के पास जाने को कहा। व्यापारी और कसाई बीरबल के पास गये।
बीरबल ने ध्यान से पैसे के थैला को निचे रखा। फिर उसने व्यापारी से कहा, “क्या तुम खून का व्यापार करते हो?” व्यापारी हताश रहा उसने कहा, “नहीं श्रीमान मैं तो तेल का व्यापार करता हू।” बीरबल मुस्कुराया और उसने थैला कसाई के हाथों में रख दिया। बीएबल ने कहा, “थैले पर खून के धब्बे हैं। कुछ सिक्को पर भी खून के धब्बे लगे हुए हैं। अगर यह थैला आपका है तो इसको खून के धब्बे कैसे लग लगे।”
व्यापारी के पास कोई जवाब नहीं था और उसकी चोरी के लिए उसको दंडित किया गया। कसाई ने बीरबल को धन्यवाद किया और ख़ुशी से अपने दुकान पर चला गया।
सबसे मनहूस आदमी
बहुत समय पहले, बादशाह अकबर के शहर में रत्नाकर नाम का एक युवक रहता था। उसका कोई दोस्त नहीं था, क्योंकि सभी उससे नफरत करते थे। सभी लोग उसे बदनसीब कहते थे और उसका मनाक उड़ाकर उस पर पत्थर फेंकते थे।जब यह खबर बादशाह एकबाबर के पास पहुंच गयी तो उसने रत्नाकर को दरबार में बुलाया और उससे बात करने लगा। लेकिन उसी वक्त एक दूत ने दरबार में आकार अकबर को सूचित किया कि उनके परिवार का एक सदस्य बीमार है।
अकबर तुरंत दरबार छोड़कर अपने परिवार के पास चला गया। डॉक्टरों को दिखाने के कुछ समय बाद उनके परिवार के सदस्या को काफी अच्छा लगने लगा। शाम को अकबर दरबार में लौट आये तब उसने देखा की रत्नाकर अभी भी उनका इंतनार कर रहा था।
रत्नाकर को देखते ही अकबर को गुस्सा आ गया, और उसने कहा, “तो सारी अफवाहें सच हैं तुम वास्तव में ही मनहूस हो। तुमने मेरे परिवार के सदस्य को बीमार कर दिया है।” उसने रत्नाकर को जेल में डालने का आदेश दिया।
सब जानते थे की बादशाह का निर्णय बहुत ही अनुचित था, लेकिन दरबार में किसी का भी उसके विरोध में कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं थी।
अचानक बीरबल रत्नाकर के पास गया और उसने कानों में कुछ कहने लगा। रत्नाकर बादशाह के सामने झुककर बोला, “जापनाह, मैं कैदखाने में जाने को तैयार हूँ, पर आप मेरे एक सबाल का जवाब दीजिये, यदि मेरे चेहरे को देखकर यहाँ कोई बीमार पड़ गया है, तो मेरा चेहरा आपने भी देखा हैं, तो आप बीमार क्यों नहीं हुए।”
यह सुनकर अकबर को अपनी गलती का एहसास हो गया। उसने हस्ते हुए रत्नाकर को जाने दिया और सोने के मोहरे भी भेट में दे दिया।
सबसे बुद्धिमान आदमी
एक दिन बादशाह अकबर ने बीरबल से कहा, “बीरबल, दरबार में एक ऐसे आदमी को ढूंढ कर ले आओ, जो बहुत ही बुद्धिमान हो।” बीरबल कुछ देर शांत रहे, फिर बोले, “जहांपनाह, में जल्दी ही ऐसा आदमी ढूंढ़कर दरबार में ले आऊंगा। लेकिन इसके लिए समय और धन की आवश्यकता पड़ेगी।”
बादशाह अकबर बोले, “बीरबल, हम तुम्हें सोने की ५०० मोहरें और दस दिन का समय देते हैं।” धन और दस दिन का अवकाश लेकर बीरबल अपने घर चले गए। सारा धन उन्होंने दीन-दुखियों में बांट दिया। दसवे दिन बीरबल ने एक धोबी को पकड़ा और उसे स्नान करवाकर अच्छे कपड़े पहनाए, तथा सोने की २०० मोहरें उसे देकर दरबार में ले आए।
रास्ते में ही धोबी को बता दिया कि उसे बादशाह अकबर के सामने कैसा व्यवहार करना है। बादशाह अकबर के दरबार में पधारते ही बीरबल ने कहा, “जहांपनाह, में बुद्धिमानों का बुद्धिमान व्यक्ति ढूंढ़कर लाया हूं।”
धोकेबाज कौन?
एक बार बादशाह अकबर के शहर में एक व्यक्ति रहता था उसका नाम था युसूफ। वह लोगों को बेबकूफ बनाकर पैसे कमाता था। एक बार वह बाजार में एक बहुत अमीर व्यापारी ये मिला, जो बाहरी देश से आया हुआ था। वह इस शहर में नया था, इसलिए जब युसूफ ने उसे अपने घर रात के भोनन के लिए आमंत्रित किया, तो व्यापारी ने इस उम्मीद से आमंत्रण स्वीकार कर लिया कि इस नये शहर में उसके नये दोस्त बन जायेंगे।
उस रात उन होंने बहुत अच्छा खाना खाया और बहुत देर तक बातें की। अगली सुबह युसूफ ने व्यापारी से कहा, “आपने मेरा हीरा चोरी कर लिया हैं।
मैं उसे वापस चाहता हूँ।” व्यापारी ने कहा; “भाई मै नहीं जनता कि तुम किस हीरे की बात कर रहे हो। मुझे बिल्कुल पता नहीं है।”
उन दोनों में लड़ाई शुरू हो गई। आखिरकार दोनों ने अदालत जानेका फैसला किया। बादशाह अकबर दोनों को कहानी सुनकर हैरान रह गए। उन्होंने बीरबल को यह मामला सुलझाने को कहा।
जादुई तोता
एक आदमी था वह तोते को पकड़ता,उन को सिखाता-पढ़ाता और जो उस को खरीदना चाहते है उन लोगों को बेच देता यही उसका व्यवसाय था।
एक बार उस ने एक बहुत ही सुन्दर तोता पकड़ा। उस ने उस को बात करना सिखाया और फिर बादशाह अकबर को भेंट कर दिया। बादशाह को वह खूबसूरत तोता बहुत ही पसंद आया। वह अक्सर उस से बात करते।
बादशाह ने उस की सुरक्षा के लिये खास इन्तजाम कर रखा था और महल में सब को कह रखा था कि अगर कोई उस के मरने की खबर बादशाह को देगा तो वह उस को फॉसी पर लटका देंगे। जब लोगों ने यह सुना तो वह उस तोते की और भी ज्यादा अच्छी तरह से देखभाल करने लगे।
फिर अचानक एक दिन ऐसा हुआ कि वह तोता मर गया। अब कौन बादशाह के पास जाये और उन को बताये, क्योंकि जो कोई भी जायेगा उस को फॉसी की सजा पक्की थी। पर किसी न किसी को तो यह खबर वादशाह को देनी ही थी।
एक नौकर तुरन्त ही बीरबल के पास गया और सब हाल बताया और अनुरोध की वह उन सव की जान बचा लें। नौकर रोते हुए बीरबल से कहने लगा, “अगर में बादशाह से जा कर यह कहता हूँ कि आप का प्यारा तोता मर गया तो बादशाह मुझे फॉसी पर चढ़ा देंगे। और अगर मैं यह बात उन को नहीं बताता हूँ तो भी वह मुझे फॉसी पर चढ़ा देंगे। मेरी जान बचाए साहब।”
बीरबल ने कुछ पल सोचा और उस नौकर से कहा को वह खुद बादशाह के पास चला जायेगा। जब दरबार लग गया तब बीरबल बादशाह के पास पहुँच कर उन्हों ने सिर झुकाया और बोला, “हुजूर आप का तोता…।” बादशाह बोले, “तोता क्या?” बीरबल ने हकलाते हुए कहा, “हुजूर आप का तोता…।”
बादशाह वोले, “बीरबल क्या हुआ मेरे तोते को? मैं तुम से पूछ रहा हूँ बीरबल, क्या हुआ है मेरे तोते को?” बीरबल ने कहा, “जहॉपनाह आप का तोता न तो कुछ खाता है, न पीता है। न ही अपने पंख हिलाता है और न ही अपनी आँखें खोलता है।” बादशाह बीरबल की बात सुनकर चिल्लाये,“क्या? क्या मेरा तोता मर गया?”
बीरबल ने बोला, “हुजूर यह में ने नहीं कहा। यह तो आप ही ने कहा।” बादशाह समझ गये कि बीरबल ने यह सब इस तरीके से क्यों कहा। वह बीरबल के तोते के मरने की खबर इस तरीके से देने पर बहुत हेँसे।
ईमानदारी प्रजा
एक दिन बादशाह अकबर ने बीरबल के सामने बात रखी, “बीरबल! हम यह जानना चाहते हैं कि हमारे राज्य में प्रजा कितनी ईमानदार है और हमें कितना प्यार करती है?”
बीरबल ने तुरंत उत्तर दिया, “हुजूर! आपके राज्य में कोई भी पूरी तरह ईमानदार नहीं है। इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि प्रजा आपको कितना प्यार करती है।”
बादशाह अकबर बोले, “आप इस बारे में इतना निश्चित कैसे हो सकते हैं?” बीरबल ने कहा “मैं अपनी बात आपको साबित कर सकता हूं, जहांपनाह!” “ठीक है, तुम हमें साबित करके दिखाओ।”
तब बीरबल ने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि बादशाह एक खास भोज करने जा रहे हैं। इसके लिए सारी प्रजा से अनुरोध है कि कल दिन निकलने से पहले हर आदमी को एक-एक लोटा दूध बाजार में रखे बड़े बर्तन में डालना है।
ढिंढोरा सुनकर हर आदमी ने यही सोचा कि जहां इतना दूध इकट्ठा होगा, वहां उसके द्वारा एक लोटे पानी का क्या पता चलेगा? आखिर में ज्यादा तर लोगों ने बर्तन में पानी डाला।
सुबह जब बादशाह अकबर ने उस बर्तन में देखा तो वे दंग रह गए। उस बर्तन में ज्यादातर केवल पानी ही पानी था। इस घटना के बाद बादशाह अकबर को यह मानना पड़ा कि बीरबल प्रजा की नब्ज को अच्छे से पहचानते हैं।
बादशाह अकबर और बीरबल शाही बाग में बैठे विभिन्न फलों पर बात कर रहे थे। बादशाह अकबर सीताफल की प्रशंसा कर रहे थे और बीरबल भी उनकी हां-में-हां मिलाते जा रहे थे तथा बीच-बीच में सीताफल खाने के फायदे भी गिनाते जा रहे थे।
इसके दो महीने बाद अकबर ने एक दिन सोचा कि देखें बीरबल की सीताफल के बारे में अब क्या राय है। अकबर ने बीरबल को दरबार में बुलाया। बादशाह अकबर ने उन्हें सादर बैठाया और सीताफल की बुराई करने लगे। बीरबल भी अकबर की हां-में-हां मिलाने लगे।
बादशाह बीरबल के मुंह से सीताफल की बुराई सुनकर हैरान रह गए और कहने लगे, “बीरबल, तुम्हारी इस बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता। हमने उस दिन सीताफल की प्रशंसा की तो तुमने भी प्रशंसा की और आज हमने सीताफल की बुराई की तो तुमने भी बुराई करनी शुरू कर दी। आखिर तुम्हारी अपनी कोई व्यक्तिगत राय सीताफल के बारे में क्यों नहीं है?
बीरबल बोला, “जहांपनाह, मैं आपका सेवक हूं, सीताफल का नहीं।” यह सुनकर बादशाह अकबर की आंखें खुशी के मारे भर आईं। उन्होंने बीरबल को गले से लगा लिया।