माता-पिता अकेले हैं
बहुत दुख की बात है ।
मैं खुद को अब तक समझा नहीं पा रही हूँ कि ऐसा भी हो सकता है ।
बात- बात दुनिया रंग - रंगीली बाबा कह कर हर अनहोनी को आत्म सात कर लेने वाली मैं , इसे नहीं पचा पा रही हूँ कि कोई बेटा इतना स्वार्थी भी हो सकता है ॥
पति तो ८५ के हैं महिला भी अस्सी के क़रीब हैं । हमारे बग़ल में जो पड़ोसी हैं वो बहुत नेक दिल इंसान हैं । हमारी उन से खूब पटती है ।
ये ही पड़ोसी उन बुज़ुर्ग दम्पत्ति की हर तरह से मदद करते हैं ।
पत्नी ही हाट - बाज़ार करती हैं , बैंक का काम करती हैं , दवा - औषधि लाती हैं । पति चलने में लाचार हैं । करोना काल में भी बेटा ने एक बार भी फ़ोन करके खैर - ख़बर नहीं ली । राशन - पानी का सारा इंतज़ाम हमारी प्रिय पड़ोसी ने पूरा किया ॥
शाम को छत पर हमारी छोटी सी गोष्ठी होती है ।
पड़ोसन ने बताया कि मिसेज़ धर के कमर में बहुत दर्द है । हमदोनों ने धर के बेटे को मौखिक लानत भेजकर उन्हें देखने गए ।
हाल-चाल पूछ कर अपने पति पाण्डेय जी को बताया । उन्होंने कहा कि एक महीने पहले जो हमारे पीठ में झटका लगा था तो जो दवाई डाक्टर विनोद पाण्डेय ने दी थी और मैं दो दिन में ही ठीक हो गया था ।
शायद वो दवाई बाक़ी है चाहे तो उन्हें दे दो ॥
मैंने दवाई सीधे ना देकर अपनी पड़ोसन को दिया और कहा कि अगर उचित समझें तो मिसेज़ धर ये दवाई ले सकती हैं ॥
दूसरे दिन पड़ोसन ने आकर बताया कि मिसेज़ धर बिल्कुल ठीक हो गईं हैं और मेरे माध्यम आपको धन्यवाद भेजा है ।
मैं कहती हूँ ईश्वर मिसेज़ धर को सदा चलायमान रखना । उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से शक्तिशाली रखना ।
हम सब अपने कालोनी में एक परिवार की तरह रहते हैं ।
हिलमिल कर जीते हैं ।
एक - दूसरे का ख़्याल रखते हैं , एक - दूसरे की मुश्किलें आसान करते हैं ॥
चाहे गीता बाँचिए, चाहे पढ़िए क़ुरान ,
पड़ोसी से प्यार ही सब धर्मों का ज्ञान ॥
आभार:- शीला पाण्डेय
कोलकाता
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