महाकुंभ 2025: प्रयागराज ही नहीं, देश में तीन और शहरों में लगता है महाकुंभ, जानिए कब कितने साल में होता है आयोजन

महाकुंभ-2025 का आयोजन इस बार उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हो रहा है. कुंभ मेलों का आयोजन एक प्राचीन परंपरा है, जो भारत के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों पर आयोजित होते हैं. सवाल है कि इतना बड़ा हुजूम, इतना विशाल जमावड़ा और इतने दिनों तक अध्यात्म व आस्था के संगम की ये तिथि कैसे तय होती है.

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Jan 3, 2025 - 16:41
Jan 4, 2025 - 15:23
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महाकुंभ 2025: प्रयागराज ही नहीं, देश में तीन और शहरों में लगता है महाकुंभ, जानिए कब कितने साल में होता है आयोजन

महाकुंभ-2025 का आयोजन इस बार उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हो रहा है. कुंभ मेलों का आयोजन एक प्राचीन परंपरा है, जो भारत के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों पर

क्या है कुंभ की कथा?
ये कुंभ और महाकुंभ के आयोजन की सामान्य जानकारी है. जिसके आधार पर कुंभ मेलों का आयोजन होता है, लेकिन असल में ये अधूरा तथ्य है, पूरा नहीं. पूरी बात जानने के लिए फिर से युगों पुरानी उसी कथा की ओर चलना होगा, जहां से महाकुंभ मेले की जमीन तैयार हुई थी.

हुआ यूं कि समुद्र मंथन से जब 14 रत्न निकले तो सबसे आखिरी में अमृत कुंभ प्राप्त हुआ. इसे आयुर्वेद के जनक, धन्वन्तरि देव अपने हाथों में लेकर समुद्र से बाहर निकले थे. अभी अमृत कुंभ बाहर आया ही था कि इसे लेकर असुरों में होड़ मच गई कि वह इसे देवताओं से पहले अपने अधिकार में ले लेंगे और पी डालेंगे. राजा बलि की सेना में उनका एक सेनापति था स्वरभानु. वह जल, स्थल और आकाश तीनों ही जगहों पर तेज गति से दौड़ सकता था. उसने अमृत कुंभ को एक पल में ही धन्वंतरि देव के हाथ से झटक लिया और आकाश मार्ग की ओर ले चला. देवताओं के दल में भी इंद्र का पुत्र जयंत उसी ओर टकटकी लगाए देख रहा था. उसने जैसे ही स्वरभानु को अमृत की ओर लपकते देखा तो वह तुरंत ही कौवे का रूप धरकर उसके पीछे उड़ा और आकाश में उसके हाथ से अमृत कुंभ छीनने लगा. 

चार स्थानों पर गिरा अमृत
जयंत को अकेले ही कोशिश करते देख, सूर्य, चंद्रमा और देवताओं के गुरु बृहस्पति भी उनके साथ आ गए. स्वरभानु का साथ देने कुछ अन्य असुर भी आकाश मार्ग में उड़े और इन सबके बीच अमृत कुंभ को लेकर छीना झपटी होने लगी. इसी छीना झपटी में अमृत कुंभ से अमृत छलका और पहली बार हरिद्वार में गिरा. इस तरह हरिद्वार तीर्थ बन गया. दूसरी बार अमृत छलका तो वह गंगा-यमुना और सरस्वती के संगम स्थल पर प्रयाग में गिरा. इस तरह यह स्थान तीर्थराज बन गया. अगले दो और प्रयासों में कुंभ से अमृत छलका तो वह उज्जैन में क्षिप्रा नदी में जा गिरा और चौथी बार नासिक की गोदावरी नदी में अमृत की बूंदे गिरीं. इस तरह गंगा नदी में दो बार और इसके अलावा क्षिप्रा और गोदावरी नदी में अमृत की बूंदें गिरीं. क्षिप्रा नदी उत्तरी गंगा भी कहते हैं तो वहीं गोदावरी नदी का जिक्र पुराणों में गोमती गंगा नाम से की बार आया है. अमृत सलिला होने के कारण दोनों ही नदियां भी गंगा के ही समान पवित्र हैं.

क्या है महाकुंभ?
कहानी में आगे क्या हुआ? यह दूसरी बात है, लेकिन मुख्य बात ये है कि अमृत की खोज आज भी जारी है. अमृत की यही खोज भारतीय जनमानस को एक साथ-एक जगह ले आती है. पवित्र नदियों के बहते जल के आगे सभी की सारी अलग पहचान छिप जाती है और वह सिर्फ मनुष्य रह जाते हैं. फिर तो गंगा में कमर तक उतरे और डुबकी लगाकर झटके से ऊपर उठे माटी के जीवंत पुतलों से सिर्फ एक ही आवाज आती है, हर-हर गंगे, जय गंगा मैया. गंगा घाट वह जगह बन जाते हैं, जहां सांसारिकता के सागर का मंथन होता है और इस मंथन से एकता की भावना का अमृत मिलता है. जिस आयोजन के तहत यह पूरी प्रक्रिया होती है, वह महाकुंभ कहलाता है.

प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन
महाकुंभ-2025 का आयोजन इस बार उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हो रहा है. कुंभ मेलों का आयोजन एक प्राचीन परंपरा है, जो भारत के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों पर आयोजित होते हैं. सवाल है कि इतना बड़ा हुजूम, इतना विशाल जमावड़ा और इतने दिनों तक अध्यात्म व आस्था के संगम की ये तिथि कैसे तय होती है. यह भी कि, किस स्थान पर कुंभ लगने वाला है, इसका पता कैसे चलता है. कौन है जो ये सारे फैसले करता है.

इन सवालों का जवाब है, खगोल विज्ञान. कुंभ कहां आयोजित होगा. यह निर्णय खगोल विज्ञान, ज्योतिष, और धार्मिक मान्यताओं के आधार पर किया जाता है. कुंभ मेले चार स्थानों पर बारी-बारी से आयोजित होते हैं: 

प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)
हरिद्वार (उत्तराखंड)
उज्जैन (मध्य प्रदेश)
नाशिक (महाराष्ट्र)

कैसे तय होता है स्थान?

कुंभ मेला का स्थान तय करने में सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रहों की स्थिति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. जब सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं और बृहस्पति वृषभ राशि में होता है, तब कुंभ मेला प्रयागराज में आयोजित होता है. वहीं, जब सूर्य मेष राशि और बृहस्पति कुंभ राशि में होता है, तो कुंभ मेला हरिद्वार में आयोजित होता है. इसके साथ ही जब सूर्य सिंह राशि और बृहस्पति ग्रह भी सिंह राशि में होते हैं, तो कुंभ मेला उज्जैन में होता है. आखिर में जब, सूर्य सिंह राशि और बृहस्पति सिंह या कर्क राशि में होता है, तब कुंभ मेला नाशिक में आयोजित होता है.

हर बार 12 वर्षों में ही क्यों होता है कुंभ (महाकुंभ) आयोजन
कुंभ मेले का आयोजन प्रत्येक 12 वर्षों के अंतराल पर होता है. हर स्थान पर 12 वर्षों में एक बार कुंभ मेला आयोजित होता है. इसके अलावा, अर्धकुंभ मेला हरिद्वार और प्रयागराज में 6-6 वर्षों के अंतराल पर होता है. कुंभ मेला समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा है. मान्यता है कि अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें इन चार स्थानों पर गिरी थीं, जिससे ये स्थान पवित्र हो गए.
यह आयोजन न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और इतिहास को भी समृद्ध करता है. कुंभ मेले का आयोजन 12 वर्षों के अंतराल पर होने का कारण खगोलीय गणनाओं और हिंदू ज्योतिष शास्त्र से जुड़ा हुआ है. इसका मुख्य आधार सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रह की स्थिति है. जब बृहस्पति ग्रह मेष राशि या सिंह राशि में प्रवेश करता है और सूर्य-चंद्रमा की स्थिति विशेष योग बनाती है, तब कुंभ मेले का आयोजन होता है.

ये है खगोलीय और वैज्ञानिक वजह
असल में बृहस्पति ग्रह को सूर्य का एक चक्कर लगाने में लगभग 12 वर्ष लगते हैं. इसलिए, हर 12 वर्षों में इस ग्रह का कुंभ मेले के स्थान को निर्धारित करने में खास योगदान है. इसके अलावा मान्यता है कि, ग्रहों के स्थान परिवर्तन और राशि में बदलाव करने से हर 12 साल में नदियां भी अपने आप अपना कायाकल्प करती हैं, जिसका उनका जल अमृत के समान हो जाता है इसलिए अलग-अलग चक्र में 12 वर्षों के अंतराल में कुंभ मेले का आयोजन होता है.

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