चिठ्ठी
शेखर चार बहनों का इकलौता और सबसे छोटा भाई था।
चारों बहनों की शादी हो चुकी थी।
बीमारी के वजह से माता-पिता का निधन हो चुका था। चारों बहनों ने अपनी इकलौते भाई के लिए एक से बढ़कर एक लड़कियां ढूंढी।
लेकिन शेखर हर बार कोई ना कोई बहाना बना देता और शादी के लिए मना कर देता।
बहनें परेशान हो चुकी थीं। इस बार राखी पर अपने भाई से साफ-साफ बात कर लेने की ठान कर चारों मायके आई... यही एक ऐसा त्योहार होता था जब चारों बहने मायके आती थी।
राखी बांधने का काम पूरा होने बाद चारों बहनें शेखर को घेरकर बैठ गई और एक-एक कर सवाल पर सवाल करने लगी कि वो क्यों किसी लड़की को पसंद नहीं कर रहा। परेशान होकर शेखर ने बता ही दिया कि वो अपने ऑफिस की एक लड़की पायल से प्यार करता है और उसी से शादी करना चाहता है।
पायल एक अलग जाति से थी बहनों ने ऐतराज जताया कि उनके घर में ये सब नहीं चलता।
दूसरी बहन बोली कि "हम अपने ससुराल में क्या जवाब देंगे।
तीसरी बोली "अगर तुमने ऐसा किया तो हम समझेंगे हमारा मायका अब नहीं रहा।
उसे लगा ऐसा कहने पर शेखर शायद अपना विचार बदल ले।
शेखर जो बचपन से ही ज़िद्दी था उसने अपना फैसला सुना दिया मैं शादी करूंगा तो बस पायल से।
चारों बहनें शेखर की ज़िद जानती थी, चारों नाराज़ होकर अपने अपने ससुराल वापस चली गई।
शेखर ने सबको मनाने की बहुत कोशिश की पर कोई नहीं माना, आखिर उसने पायल से कोर्ट मैरिज कर ली।
ऐसे मे बहनों ने उससे बोलना तक बंद कर दिया।
शेखर को हर साल राखी पर अपनी बहनों की याद आती थी, पायल भी उस दर्द को समझ सकती थी। शेखर दोस्तों से अपनी बहनों की खबर लेता रहता था।
पायल कहती की "अब तो बहुत समय बीत चुका है आप ही फोन लगा कर बात कर लो।
छोटे हो आप।
शेखर -"मैं तो बात कर लूंगा, मुझे किसी ने कुछ कहा तो फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन तुम्हें किसी ने कुछ कहा तो वो मैं सहन नहीं कर पाऊंगा।
ये ना हो कि रिश्ते और बिगड़ जाए।
दिन बीते, साल बीते, एक दिन खबर आयी की शेखर की तीसरी बहन के पति का रोड एक्सीडेंट में निधन हो गया। शेखर के पैरों तले जमीन खिसक गई।
पायल ने शेखर के तुरंत निकलने की तैयारी कर दी। शेखर निकलते निकलते रुक गया।
शेखर -मैं वहाँ कैसे।
पायल -अभी आपकी सबसे ज्यादा ज़रुरत आपकी बहन को है, कोई कुछ बोल भी दे तो सुन लीजियेगा और सुनिये मैने आपके बैग में एक चिट्ठी रखी है वापस आने से पहले किसी एक बहन को दे दिजियेगा।
" शेखर चिट्ठी के बारे में पूछने की मनस्थिति में नहीं था "ठीक है,बोल कर निकल गया
शेखर बहन के ससुराल पहुंचा, भाई को देखते ही बहन उसके गले लगकर खूब रोई।
बहन का रोना भाई की आत्मा को चीर गया हो जैसे।
सारी अंतिम क्रिया पूरी हो गई, शेखर निकलने की तैयारी करने लगा।
बड़ी बहन शेखर का सामान बैग में रखने लगी की उसके हाथ पायल की रखी चिठ्ठी आयी।
ऊपर ही लिखा था दीदी एक बार जरूर पढ़ियेगा ।
बहन ने हिचकिचाहट में चिठ्ठी खोली।
जिसमें लिखा था।
प्रणाम,
मैं आप सबसे पहले तो माफी चाहती हूँ कि इस दुख की घड़ी में मैं वहां आप लोगों के साथ नहीं हूँ पर मैं और आपके भाई हमेशा आप लोगों के साथ हैं।
ये आपका मायका पहले है मेरा ससुराल बाद मे। आपका पूरा हक है अपने भाई पर और आपके मायके पर।
मैं आप लोगों के बीच ना कभी आयी थी ना कभी आऊंगी।
मुझसे कोई गलती हुई हो तो माफ करें लेकिन अपने भाई को अनाथ ना करें।
विनम्रता पूर्वक
पायल
उस समय तो इस चिठ्ठी का जिक्र बड़ी बहन ने किसी से नहीं किया।
समय बीता, अगले साल की राखी आ गई।
सुबह सुबह दरवाजे की घंटी बजी, पायल ने शेखर से दरवाजा खोलने को कहा।
शेखर ने दरवाजा खोला तो सामने चारों बहनों को देखकर खुशी से चिल्लाने लगा "पायल देखो कौन आया है।
पायल हाथ में पानी का गिलास ले कर बाहर आई, वो जानती थी कि आज राखी पर शेखर की बहनें आने वाली है ये बात पायल को उन लोगों ने ही फोन कर के बतायी थी।
चारों बहनों ने कई साल बाद मायके में पैर रखा और सबसे पहले पायल को गले लगा कर धन्यवाद दिया कहा तुम्हारी चिठ्ठी ने हिम्मत दी की हम हमारे मायके आ सके।तुमने आज हमारा मायका हमें वापस दे दिया, हमेशा खुश रहो।
शेखर के हाथ में इतने सालों बाद उसकी बहनों ने राखी बांधी, उसकी खुशी उसके आँखों में नज़र आ रही थी जिसे देखकर पायल भी खुश थी।
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