उदार
वह सड़क के किनारे एक ठेले वाले की बेंच पर बैठा कुछ खा रहा था। वह एक गरीब घर का बारह-तेरह साल का बच्चा था। गंदे, मैले कपड़े, बिखरे बाल, बद हाल सा वह बच्चा आस पास के माहौल से बेख़बर खाने मे इतना मगन था जैसे वर्षो बाद कुछ खा रहा हो।
साकिब लगभग बीस मिनट से इस गरीब बच्चे को देख रहा था, वह हर निवाले पर इस बच्चे के भाव नोट कर रहा था, अचानक साकिब के दिल में एक अजीब विचार आया, और वह उठकर इस बच्चे के पास आ गया।
, " बेटे! तुम्हारा नाम क्या है? बच्चे ने सिर उठाकर साकिब की ओर देखा और कहा, '', मेरा नाम राहिल है।'' कहाँ रहेते हो ? वहाँ पिछे झुग्गी मे! क्या आप स्कूल जाते हो? "हाँ" अच्छा अबू क्या करते है? वह इस दुनिया में नहीं है" बच्चे की आँखें नम हो गयीं।
साकिब ने मामले की नजाकत को समझते हुए बातचीत का विषय बदल दिया, ''अरे, खाना क्यों बंद कर दिया बेटा, खाओ ?''अचछा! ये खाना आप ने ख़रीद कर लिया है? हां, मैंने खरीदा है "क्या आपके पास पैसे थे? हां थे" पैसे किसने दिए? मेरे पास अपना पैसा था।
"तुम्हें यह पैसे कहां से मिले? मैं मज़दूरी करके कमाता हूं" अच्छा! आप क्या करते हैं ? जी,मैं गाडीयाँ साफ करता हूँ।" शाबाश, आप पढ़ते भी हैं और काम भी करते हैं!
मेरी, माँ भी काम करती है, वे क्या करती है? वह लोगों के यहाँ बर्तन साफ करती है।" तो आप मां के लिए खाना नहीं ले जाओगे? मैंने पहले ही मां को दे दिया है,
उसके बाद बहुत कम पैसे बचे थे इसलिए आज थोड़ा लेकर खा रहा हूं , नहीं तो मैं हमेशा मां के साथ ही खाना खाता हू।
"तो तुम आज मां के साथ खाना क्यों नहीं खा रहे हो?" क्योंकि आज पैसे कम थे तो माँ को ज्यादा खाना खरीद दिया, बचे पैसे मे बहूत कम खाना आ पाया।
अगर माँ के साथ खाता तो माँ अपना खाना भी मुझे दे देती।
सुनो, मुझे भी बहुत भूख लगी है और मेरे पास पैसे नहीं हैं, क्या तुम मुझे अपने भोजन का एक छोटा सा हिस्सा दे सकते हो? साकिब ने बच्चे के दिल को टटोलने के लिए कहा।
बच्चे ने ख़ुशी से हाँ बोलते हूए अपनी प्लेट साकिब की ओर सरका दी। साकीब सोचने लगा ,इतना बड़ा दिल केवल गरीबों के पास ही हो सकता है, क्योंकि वह भूक की तडप जानता है उसे अपनी भूक के साथ साथ दूसरो की भूक का भी एहसास होता है।
Credit : आसिफ शेख
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